बीसवीं सदी में गाँधी ने भारत का जो सपना देखा था, उस सपने में देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए? संभवतः यह भी था, जिस पर गाँधी ने कुछ छिट-पुट कामचलाऊ टिप्पणियां ही की हैं, विस्तार से कुछ लिखने की जरूरत शायद नहीं समझी। गाँधी के शिक्षा संबंधी विचारों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि गाँधी सुलझे हुए कोई प्रखर शिक्षाविद थे, इसका कुछ-कुछ अनुमान उनकी टिप्पणियों में आए शिक्षा संबंधी विचारों से लग जाता है। भारतीय समाज के व्यापकता और वैविध्य को सामने रखकर उनके विचारों का विश्लेषण करें, तो वे कहीं-कहीं बहुत कमजोर और ज्यादातर स्थितियों में अव्यावहारिक दिखते हैं। ऐसा नहीं कि पूरा भारत घूम लेने के बाद भी वृहद् 'भारतीय समाज' की जटिल संवेदना की नब्ज उनसे छूट गई थी या वे इस समाज की जातिवादी और वर्गवादी सच्चाइयों से तब भी अपरिचित ही थे। और ऐसा भी नहीं था कि वे अपनी समकालीन दुनिया के दूसरे मुल्कों के तमाम शिक्षाविदों द्वारा किए जा रहे शिक्षा संबंधी व्यापक प्रयोगों से अनजान थे। बावजूद इसके भारतीय शिक्षा का कोई ऐसा स्वरूप देने में वे सफल नहीं हो सके, जिसे दुनिया गाँधी-मॉडल के रूप में आज याद करती।
बीसवीं सदी में गाँधी ने भारत का जो सपना देखा था, उस सपने में देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए?